Sunday 19 January 2020

असह्य आठवण

आठवण असह्य अशी ,
             असहाय्य अगदी 
केवढी करते कधी ,
              कित्येकदा कळे ना
सारेच सरलेले साठ  
              संवत्सर सुखाचे 
पुन्हा पाहण्या पलटूनी
               पान पालटेना
आठवांचे आश्रुंसवे 
              आवेदन अतिभावूक
बहु बहरवूनी बोल
              बोलता बोलवेना
सारे सगेसोयरे 
               सुखाचे सोबती 
सत्य स्वल्प से 
             समजता समजेना
baaji©

Sunday 12 January 2020

Me kadhi

मी कधी, तुझ्या सोबती , कधी गुंतलो ,कळे ना मला
तू कधी ,पुन्हा तू कधी,कधी भेटसी  , मला सांग ना

आभास तू ,का जाहली , स्वप्नात माझ्या,तू ये ना जरा 
स्वप्नात तू,राहू नको ,कधी सोबती  ,तू ये ना जरा
तू कशी,जशी चांदणी ,कधी रातीला ,तू ये ना जरा
मी तुझा,होऊ दे तुझा,मला गुंतू दे,तू ये ना जरा

तू कधी ,मनाला कधी,कधी गुंफले,कळे ना मला
का तुझी,मनाला तुझी,का ओढ  लागे ,कळे ना मला
तू आता,मला सोबती ,सवे चालण्या, तू ये ना जरा
तू असा ,तो चंद्र जसा ,सवे चांदणीच्या तू ये ना जरा
तू असा,जसा श्वास हा ,हृदयात ये,तू ये ना जरा
baaji©

Monday 6 January 2020

रण

रण है रण है रण है रण है
जीवनभर  ये क्षण क्षण है
सो ना मत तुम बेखबर यू
मौत का ये मार्ग क्रमण है
सोए नही है शत्रु शिबीर वो
सो तुम कैसे  सकते हो
वो बना रहे  षड्यंत्र विरुद्ध
तुम शस्त्र कैसे रख सकते हो
अचल पर्वत सी सेना उनकी
सीने मे बारुद भरो तुम
आग लगाकर चल रहे ओ
पानी बनकर उनपे गिरो तुम
चाल समझ लो चाल समझ लो
चौका दो भ्रमित कर आज उन्हे
काट के आवो मत्त आस्थिया 
और घेर  डूबाओ आज उन्हे
राज तंत्र है राज तंत्र है 
चाले अपनी संभाल रखो
वक्त सही  और मौके पे
फिर सुलतानढवा करो
बचती नही है सोई दिवारे 
ना बचते सोए खंदक है
बच सकते ना गिरीदुर्ग वहा
ना सोए लक्षतम सैनिक है
तुम्हे जागना होगा वीरो
कुछ रातो कि कुर्बानी है
यह देश है अंदर से खतरे मे
फिर घर मे ही कुछ द्रोही है 
ढूंढ निकालो ढूंढ निकालो
और फिर  सुधारो उन्हे 
यह युद्ध रात को थमा नही
मौका मिला है मारो उन्हे
लाख शत्रु का भय किसे है
धोका पाले भूजंगो का
समशेरे देंगी साथ सदा और
है भय छुपी सुरंगो का 


baaji

पानिपत काव्य

प्रलयलोटला सागर उठला  खणाणल्या समशेरी महाभारतासम रण दिसले कुरुक्षेत्राची भुमी भाऊ सदाशिव रणात तांडव काळाग्निसम करीत भिडले शिंद्याचे रण भैरव ...