Friday 11 June 2021

संताजी घोरपडे कविता

संताजी आले सैन्य वीजेसम, उसळून गेले मराठमोळे
मुगली छावणी पडली उताणी , औरंगजेब धरेवर लोळे

संताजी आया आया देखो , म्हणे क्रूर शैतान वो
उडती धडे अन कटे मुंडकी ,भैरव या वेताळ हो
अंधकारमय आसमंती तलवार ‍, भासते सुर्य जणु 
अंधकार रुपी मुगलांना तलवार ,  घोरपडी काल जणु

संताजी आले सैन्य वीजेसम उसळून गेले मराठमोळे
मुगली छावणी पडली उताणी औरंगजेब धरेवर लोळे

म्हणे संताजी 

अरे भेकडा शहा औरंग्या , जनानखाना सोडून ये  
तलवार घेऊनी लढण्या ये , वा साडी घाल नाचण्यास ये 
खांडोळी खांडोळी करतो , कात्रजचा तुज घाट दावतो
शिवरायांचे तेज दावतो , मर्हाटी क्षात्रतेज दावतो

बाजी पांडव © कवितेचे सर्वाधिकार रक्षित.

Tuesday 1 June 2021

अर्जून का मनोगत

सुनो कर्ण तुम, अर्जुन मैं; कुछ़ बाते बताने आया हूँ,
जीवन कि मेरी दुविधा मैं ,कुछ़ तुमसे बांट़ने आया हूँ।

खो कर तुमको मिले माँ पिता , मुझे जन्म से पिता नहीं, 
राजवंश मे जन्म हूआ पर , कभी वनवास चूका नहीं।

तुमने बचपन बीता दिया , माँ पिता संग यारों के,
मुझ को शत्रू मिले जन्म से , आप्त मिले विष प्यालों से।

कवच दिया था तुम्हे पिता ने , और तेज भी वैसा ही,
मुझ को मिल गये गुरु द्रोण बस , बाकी सब कुछ़ वैसा ही।

तुम को परायों ने अपमाना , दाह उसका भी बहूत हुआ 
अपनो ने जलाया लाक्षागृह मे ,  उसका दाह क्या कभी गया?

तुमको पता है दुख पत्नी को ‍, बाँट़ने पर क्या होता है, 
बस सोचकर देखो कर्ण स्वयं , मन कितना हिल जाता है। 

बृहन्नला बन नृत्य करना , क्या वीर को शोभा देता है,
कर शस्त्राभूषणे त्याग पहनना , चूडी भारी होता है।

संघर्ष किया है तुमने अपने , हक  के लिए परायो से, 
मुझको मारने पडे स्वजन भी ‍, हक के लिए सियारो से। 

राह दिखाई कृष्ण ने मुझे और , तुम्हे भी याद करो, 
धर्म मार्ग को चुना था मैंने और , तुमने अंधियारों को।

दानवीर अगर शब्द कहूँ तो कर्ण ही तो मैं कहता हूँ,
अधर्म पथ पर धर्म कर्ण ही सुर्यपुत्र मैं कहता हूँ। 

याद करो तुम कर्ण जिस दिन, स्वयंवर से भागे थे 
याद करो तुम चित्रसेन से मार खा कर भागे थे

विराट नगरी मे भाई को मरते छोडकर भाग गये 
सैन्य सहित तुम जान बचाकर दोनो बार भाग गए

कर्ण मारने मुझे कपट की आवश्यकता जरा नही थी
कर्म किये थे तुमने जो भी  सजा ही उसकी पाई थी

अधर्म किया था तुमने द्रौपदी , को वेश्या कहलाकर,
अधर्म किया था तुमने निहत्थे ‍, अभिमन्यु को मार गिरा कर।

अधर्मी दूर्योधन को तुमने , क्या धर्म का मार्ग बताया ?
विनाशकी जो बन जाए वह , क्या सच्चा मित कहलाया?

अगर धर्म भी अधर्म पथ़ पर , मार्गक्रमण जब करता है,
अधर्म डूबता अंधकार मे , दिनकर जैसे डूबता है।

धर्म मार्ग पर चले जो वही धर्मवान कहलाता है
अधर्म चुन ले तो ईश्वर भी असुर यहा कहलाता है 

Baaji©

पानिपत काव्य

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