रणरागिणी चपलदामिनी
असुरखंडिणी उभी रहा
महिषमर्दीनी धर्मरक्षिणी
बन युद्धशलाका उभी रहा
कराल काल हननी तुच तु
जगदोद्भवकारिणी तुच तु
मनकुंडलिणी ही तुच तु
बन जगद्व्यापिका उभी रहा
आठव तु स्वःतेज भवानी
मारिले असुर रक्त प्राशुनी
त्रीलोक झूकले समोर जननी
तु किर्तीवर्धिनी उभी रहा
राक्षस मातले पुन्हा आता
घे शस्त्र परजूनी तु ही आता
तुज लागे कसली सहायता
बन अघोरकालिका उभी रहा
बाजी©