सहस्र है अरि ,परि न भयभीत हु ,
महाकाली की जिव्हा खड्ग का मै मित हु ,
घोष रुद्र के डमरु की ताल मै भयाण सी ,
महाकाल को अर्पित काल का मै गीत हु
बिभत्स वत्स काल का नक्त प्रचंड घोर है
लक्ष हो सहस्र रिपु ,रुद्र गणो मे जोर है
असुरो के शुल आज खणक रहे अखंड से
त्रीशुलधारी शिवभैरव का मै भी मार्तंड हु
संकट के सामने उंचे बडे मंदर है
क्लेष तनमात्र न, शिव मेरे अंदर है
कुचल दे जो हलकेसे वो मै तेरा पैर हु
मेरे महाकाल मै तो तेरा ही अंश हु
बाजी©
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