Thursday 26 April 2018

यमधर्मा..

यमधर्मा एवढे ऐकशील का ?
मला वेळ थोडा देशील का ?
कधी न सांगता तिला
घर सोडले नाही मी
आता माझ्या प्रवासाचा
निरोप तु देशील का ?

उशीरा  परतुन येताना
तिचा  चिंतेने ग्लानिस्त
चेहरा आज ही आठवतो मला
आज मृत्युशय्येवर या
तिच्या  चिंतेतील माया आठवते मला
हसतमुख तिला निरोप मला देऊ देशील का ?
यमधर्मा माझ एवढे तु ऐकशील का ?


Saturday 21 April 2018

हात हाती देऊन सये

हात हाती देऊन सये वचन तु देशील का
मन मी झालो जरी भाव तु होशील का
हात हाती घेऊनी हृदयी लावशील का
भाव मी झालो जरी स्पर्श तु होशील का ?||1||

हात हाती देऊनी सये वचन तु देशील का

उधाणल्या मनी आता लहरी उसळशील का
मन लहर मी झालो जरी पवन तु होशील का
नयन पाहता भरतीस  मनसागर पावतो का
पवन मी झालो जरी पुर्णचंद्र तु होशील का ? ||2||

हात हाती देऊनी सये वचन तु देशील का

शरीर महाली माझीया हृदयी राहशील का
बनोन हृदय स्पंदने  छातीत धडकशील कां
स्पंदनाच्या धडधडीतला श्वास तु होशील का
श्वास मी झालो जरी प्राणवायु तु होशील का ? ||3||

बाजी©

त्या रात्रीचा पाऊस

त्या रात्रीचा पाऊस सखे
अजुन ही पडतोच आहे
डोळ्यातुन विरह मृग
अजुन ही झडतोच आहे

त्या रात्रीचा पाऊस सखे
अजुन ही भिजवतो आहे
हृदयातील वणवा माझ्या
अजुन विझतोच आहे

त्या रात्रीचा पाउस सखे
गंध मातीतुन उधळितोच आहे
मन तुझ्या आठवणींच्या
सहवासात गुंतवितोच आहे

त्या रात्रीचा पाऊस सखे
अंग अजुन शाहारितोय
उब तुझ्या श्वासांची आज
पुन्हा आठवितो आहे

बाजी©

Tuesday 17 April 2018

सत्ताविसवे नक्षत्र

लेवुनी  लावण्य आलीसी कोठोनी
पुसती माझे मन तुजला
  नजर अशी नेटकी रम्ये 
पाहता बघ हा जीव भुलला
मृगसम सुंदर चाल अशी
तु न वाटसी या धरेची
विचार करता हे मन बोले
न असे सौंदर्य  अन्यत्र पहा
हळुवार कानशीली वारा बोले
हे तर सत्तावीसवे नक्षत्र अहा

तु तर सत्ताविसवे नक्षत्र नां

Friday 13 April 2018

फिरुनु पुन्हा नवी भासतेस

फिरुनी पुन्हा ,नवी भासतेस
दरवेळी तुझीयात नवे काही
फिरुनी हे मन बघ मुग्ध होते
तुझ्या अनोख्या छटेत बाई
मी गुंगतो पाहता मती गुंगते
उधळन पाहोनी सतरंगी ही
हरवतो चंचल नयनी तुझ्या
फिरुनी भासती नवेच काही
प्रिये अशी तु नवी हरवेळी
गर्दी भावनांची मन ओहोळी
उठती लोट प्रेमलहरींचै हे
नवे दरवेळी तयात काही

बाजी©

Tuesday 10 April 2018

अल्फाज ए धडकन मोहब्बत ए वतन

फितरत ए सरहद बडी कातीलाना है
शायद बडी खुबसुरत हसिना है
©baaji_pandav

बहुत खुबसुरत होती है वह सफर
जिसमे साथ सिरफ
जज्बात ए दिल का होता है

बहुत खुशनुमॉ है वह जिंदगी जिसमे
खयाल बस हिंद का होता है

फर्ज ए रिश्ते निभा लेता है
हर कोई यहा लोगोसे
खुशनसिब बस तिरंगे मे लिपट कर
मा का ऋण
चुकानेवाला होता है

बाजी©

न मदीरा मे उतनी नशा है
न मदीराक्षी के रुप मे
जो न उतरती कभी वह सिर्फ
वतन ए मोहब्बत की नशा है

बाजी©

हम हिंद के गाझी है
वतनपर मिटने को राजी है
कोई रिश्ता नही उंचा इक
देशधरम से उपर
शत्रुंजय हम बाजी है

बाजी©

फिर गुंजेगी खनककर
समशेर हमारी
फिर होगा तांडव  रण मे इक
बार हमारा
हम हिंदु है अघोर रणप्रचंड
रुद्र के
फिर होगा अखंड हिंदुराष्ट्र हमारा
बाजी©

रो रही है धरती याद मे अपने बेटो की
     मिट गये जो  देशधरम पर वही
............सुखदेवभगत सिंग की
समय न हुआ थोडा अब तो
.... ...भुल गये है हम इनको
त्याग सिख ना पाये इनसे
          क्यो कहते है  वंशज इनकी।।
#बाजी

तुजसाठी मरुन पुन्हा तारका पुंज होईन
तेजाने अल्पशा माते अगणित पिढ्या घडविण
नाही अन्य मनिषा आज मम हृदयांतरी
फडकत राहो विजयध्वज उंच मेरुशिखरी

वंदे मातरम !

लीन थे हम दंगो मै
कोई रो कर सुबक रहा था
लडते पुत्रोको देख यहा
माँ का दिल तुट रहा था

समय नही था किसी को
सिसकारे उसकी सुननेका
बहते पवित्र मा के आसु
अपने हात से पोछने का

भुल गये क्या हम इतने मे
कैसे स्वतंत्र्यता हमने पाई थी
खुन बहा कर कैसे विरोने
एकता राष्ट्र मे लाई थी

बाजी©

..जाग उठा था हिंदुराष्ट्र
जुल्म सह के सालोसाल
सहीष्णुता की विफलता को
.......वह समझा था सालोबाद
आत्मघात है यह धरम के लिये
......... राख्यो रे थोडी लाज
हिंदुस्थान हमारा है
.........हर हिंदु था भाई आज
आयोद्ध्यामे बसा प्रभु
,,......देख रहा था राह आज
इतीहास बदला रे हमने
.......आज सहीष्णुता छोड ही दी
औकात भुल गये थे कुत्ते
........ लाथ मारणा जरुरी था
बाबरी ढह गयी थी
.......आज अयोध्या मुक्त हुई
.हिंदु नाम पर एक हुये हम
.......... इतीहास था बनाया आज......
#बाजी

अल्फाज ए धडकन.. मुहब्बत

दिल के राज कभी छिप नही सकते 
  बनकर धडकन सुनाई तो देंगे
भरोसे का मजाक बनानेवाले 
    कभी तो संजीदा होंगे
दिलग्गी हारना तो आमबात होती है
जिंदगी मे दिल्लगी अपनी जगह होती है

अल्फाजो मे रह गया प्यार ये न समज तु
क्युकी टुटे दिल के अल्फाजो से ही तो
मुहब्बत की शायरीया होती है !

बाजी©

2]
मोहब्बत की है तो चाहे अब तुफान आ जाये
हमारी भरी जिंदगी मे चाहे सैलाब आ जाये
दम आगया इन धडकनो तेरे साथ होनेसे
अब मेरे खिलाफ शैतान तो क्या भगवान आ जाये

3]

अल्फाज ए धडकन series . दुनिया...

बहुत जादा महंगे होंगे वह पल हमारे
ऐ दोस्त
कितना भी कमाऊ खरिद नही पावुंगा
©baaji_pandav

इस दिल की गहराई
नापने पैमानो की जरुरत कैसी
जरुरत बस अम्लान नजर की है
साफ दिल सब युही बया कर देगा
बाजी©

झुठ के मुखौटे पहने है सब
न जाने क्यु हमे पहनाना
चाहते है
जानते  है हमारी फितरत कुछ
और है
फिर क्यु हमारी शख्सीयत
बदलना चाहते है

बाजी©

कहने को दोस्त बहुत है
मानने को रिश्ते बहुत है
सच  झुठ की  दुनिया मे
कैसे पहचानु
एकपर यहा मुखौटे बहुत है

बाजी©

देख पगली यह दुनिया गोल है
जिस जगह आज मै हु कल कोई और है
मरोडकर किसी दिल को न कर
गुरुर अपने शबाब ए हुस्न का
इस गम ए मोहबत के  गर्दीश मे
इस जगह आज मै हु जरुर कल तु है

बाजी©

हररात चर्चे चाँद के
जरुर हो सकते है
छोटे सितारो की चमक
को लोग नजरअंदाज
कर सकते है
फिर भी हम मश्गुल रहैंगे
अपने ही धुंद मे
किराये की रोशनी पे
चांद के और कितने दिन
चल सकते है !

बाजी©

गलत तो थे हम
न थे उसुल कभी
गरिब तो थे हम
न था यह मन कभी
बद्शक्ल है सुरत
न है  दिल कभी
मोहब्बत थी रुहसे
न थी जिस्म से कभी

©baaji_pandav

गलत तेरी सोच थी..

मै मोहब्बत कहता था
तु जिस्म मे
उलझ जाती थी !
©baaji_pandav

ठुकराकर किसी चीज को
यु अनदेखा कर छोडना नही
आँखोसे एकबार देखना जरुर
ठुकरानेपर कही वह टुटा तो नही .....

©baaji_pandav

कुछ वह जमाना भी था जो गुजर गया
वह लेकर साथ वक्त और उसुल गया
करता नही कोई बीनपैसे के यहा अब दोस्ती
औकात दोस्तीका पहला पैगाम बन गया
©baaji_pandav

नही खरिद सकता यहा दोस्ती मै
इस शहर मे अकेला ही ठिक हु
जाहीर सी बात है यह ए जमाने
मै यहा उतना अमिर नही हु
©baaji_pandav

घाई नसावी

घाई नसावी सुर्योदयाची आधी पहाट तर होऊ द्यावी
घाई नसावी पावसाची आधी गर्दी ढगांची जमु द्यावी
वेळ द्यावा पुर्वेस सुर्यास जाणण्यासाठी
वेळ द्यावा आकाशास मेघ समाविण्यासाठी
घाई नसावी वसंताची आधी पानझड होऊ द्यावी
घाई नसावी उमलण्याची आधी कळी पुर्ण बनु द्यावी
वेळ द्यावा धरेस या नवा बहर येण्यासाठी
वेळ द्यावा कळीस या गंधीत पुष्प बनण्यासाठी.
घाई नसावी अल्पकाळात माणुस जाणण्याची
घाई नसावी स्वभावाची परिक्षा करण्याची
वेळ द्यावा संभाषणास नाते घट्ट होण्यासाठी
वेळ द्यावा नात्यास कधी जाणुण घेण्यासाठी

बाजी©

रम्य रात इथे

रम्य रात इथे धुंद चांदवा
किरकिर रातकिडा तो
चमके मंद काजवा
गंध मोहकसा घेऊनी
वाहते हवा ,मिठीत तु
प्रिये अशी रोमांच हा नवा

रम्य रात इथे धुंद चांदवा
मंद नक्षत्रकुंज सवे
राती रम्य सुर हा
नाद बेटातुन नवा
छेडीते हवा ,गुंग मी
प्रिये असा रोमांच हा नवा
©baaji_pandav

पानिपत काव्य

प्रलयलोटला सागर उठला  खणाणल्या समशेरी महाभारतासम रण दिसले कुरुक्षेत्राची भुमी भाऊ सदाशिव रणात तांडव काळाग्निसम करीत भिडले शिंद्याचे रण भैरव ...